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इंटरनेशनल साईं सेवा ट्रस्ट द्वारा आयोजित दो दिवसीय साईं महोत्सव की शुरुआत आज से

दिल्ली, 06 दिसंबर : कौशांबी- इंटरनेशनल साईं सेवा ट्रस्ट द्वारा अयोजित दो दिवसीय महिला एवं बाल सशक्तिकरण कार्यक्रम की शुरुआत आज से होगी, कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में पुलिस अधीक्षक बृजेश श्रीवास्तव, एवं मुख्य विकास अधिकारी अजीत कुमार श्रीवास्तव उपस्थित होंगे।
श्री साईं मंदिर, को भव्य तरह से गेंदे के पुष्पों से सजाया गया है।
साईं मंदिर साईं सेवा मित्र मंडली ने सजाया जिसके निदेशक प्रशांत द्विवेदी है, साईं मंदिर (ज़िला न्यायालय के पास) साईं धाम मंझनपुर कौशांबी में स्थित है।
कार्यक्रम का शुभारंभ 11 बजे के डी द्विवेदी एडवोकेट द्वारा दीप प्रज्वलन करके किया जाएगा, तत्पश्चात कार्यक्रम की शुरुआत राष्ट्रगान के साथ होगी।
महिला सशक्तिकरण अभियान के तहत जागरूकता अभियान में महिला कल्याण विभाग के संयुक्त तत्वाधान से आयोजित (बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ) जागरूकता रैली जिसमें बालिकाएं बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ पर आधारित बैनर एवं स्केच लेके जिला न्यायालय कौशांबी से होते हुए मुख्यालय तक जाएगी।
जागरूकता रैली कार्यक्रम की शुरुआत बाल कल्याण समिति, कौशांबी के द्वारा कार्यक्रम स्थल से की जाएगी, महिला सशक्तिकरण एवं बाल कल्याण पर कार्यशाला 2:30 बजे से होगा, जिसमें पुलिस अधीक्षक, कौशांबी बृजेश श्रीवास्तव, मुख्य न्यासी इंटरनेशनल साईं सेवा ट्रस्ट के डी द्विवेदी, अध्यक्ष बाल कल्याण समिति, कौशांबी कमलेश चंद्र, और सोशल जस्टिस फोरम के अध्यक्ष डॉ. अरुण केसरवानी मुख्य रूप से मंच पे उपस्थित होके “राउंड टेबल डिस्कशन” में प्रतिभाग करेंगे और कार्यशाला के माध्यम से महिला सशक्तिकरण एवं बाल कल्याण पर आधारित कानूनों एवं प्रमुख बिंदुओं पर चर्चा करेंगे।
बच्चों द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रम की शुरुआत 11:45 A.M. से होगी।
दो दिवसीय कार्यक्रम की थीम
“बेटियाँ है देश की शान, उनकी शिक्षा और स्वास्थ्य का रखें पूरा ध्यान”
चित्रकला- थीम एवं रंगोली – थीम
(बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ)
कार्यक्रम में सोशल जस्टिस फोरम का शुभारंभ बाल कल्याण समिति एवं महिला कल्याण विभाग, कौशांबी करेगी।
यह कार्यक्रम का 13वां वर्ष है, और कुछ दिन पूर्व आईएसएसटी ने राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग, उत्तर प्रदेश के साथ मओयू किया है। इसके माध्यम से कौशांबी ज़िले में बाल कल्याण को बेहतर करने के लिए आईएसएसटी अपना योगदान दे रहा है।
एडवोकेट के डी द्विवेदी, पूर्व जिला शासकीय अधिवक्ता फौजदारी कौशांबी जो कि साईं धाम के संस्थापक है,
एडवोकेट सुशीला द्विवेदी, अध्यक्ष इंटरनेशनल साईं सेवा ट्रस्ट, कौशांबी।
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शिव मंदिर में मोरारी बापू की पूजा: एक न्यायसंगत दृष्टिकोण

नई दिल्ली : काशी, भारत का आध्यात्मिक केंद्र, जहाँ धर्म, संस्कृति और परंपराओं का सम्मान होता है, वहाँ हाल ही में एक विवाद ने जनमानस में चर्चा जगाई है। प्रख्यात रामचरितमानस के व्याख्याता और आध्यात्मिक गुरु मोरारी बापू, जिनकी पत्नी का कुछ दिन पहले निधन हुआ, उन्होंने काशी के शिव मंदिर में पूजा-अर्चना की और रामकथा गायन किया। इस घटना को लेकर कुछ लोगों ने विरोध व्यक्त किया, उनका कहना है कि सूतक के समय में धार्मिक कार्य नहीं करने चाहिए। परंतु, यह लेख मोरारी बापू के निर्णय का समर्थन करता है और अन्य संतों के उदाहरणों द्वारा उसकी पीछे के आध्यात्मिक तथा मानवीय पहलुओं को प्रस्तुत करता है।
मोरारी बापू एक ऐसे संत हैं, जिन्होंने छह दशकों से भी अधिक समय से रामचरितमानस के माध्यम से सत्य, प्रेम और करुणा का संदेश विश्वभर में फैलाया है। उनकी कथाओं ने लाखों लोगों के जीवन को प्रेरणा दी है। अपनी पत्नी के निधन के बाद भी उन्होंने अपने आध्यात्मिक कर्तव्य को जारी रखने का निर्णय लिया, जो उनकी निष्ठा और धर्म के प्रति प्रतिबद्धता का प्रतीक है। हिंदू धर्म में सूतक की परंपरा अलग-अलग समुदायों में विभिन्न तरीकों से निभाई जाती है, और इसका पालन व्यक्तिगत संदर्भ पर निर्भर करता है। मोरारी बापू ने शिव मंदिर में पूजा करके किसी परंपरा का उल्लंघन नहीं किया है; बल्कि, उन्होंने एक संत के रूप में अपने धर्म का पालन किया, जिसमें भगवान की भक्ति और लोगों के कल्याण का समावेश होता है।
हिंदू धर्म में शिव की पूजा मृत्यु और पुनर्जन्म के चक्र को स्वीकार करने का प्रतीक है। शिव, जिन्हें महादेव के रूप में जाना जाता है, वे जीवन और मृत्यु दोनों के स्वामी हैं। हमें यह समझना चाहिए कि सूतक का समयकाल शोक और चिंतन का समय होता है, परंतु इसका अर्थ यह नहीं है कि व्यक्ति भगवान की भक्ति से वंचित रहे।
ऐसा ही एक उदाहरण गुजरात के महान संत नरसिंह मेहता का है। नरसिंह मेहता ने अपने जीवन में अनेक दुख सहे, जिसमें उनके परिवार के सदस्यों का निधन भी शामिल था। फिर भी, वे भगवान कृष्ण की भक्ति में लीन रहे और अपने भजनों द्वारा लोगों को प्रेरणा दी। उनका प्रसिद्ध भजन “वैष्णव जन तो” आज भी मानवता का संदेश देता है। नरसिंह मेहता ने दुख की घड़ियों में भी भक्ति को नहीं छोड़ा, जो मोरारी बापू के निर्णय के साथ समानता दर्शाता है।
दूसरा उदाहरण संत जलारामबापा का है, जिन्होंने गुजरात के वीरपुर में अन्नदान की परंपरा स्थापित की। जलारामबापा ने अपने जीवन में अनेक चुनौतियों का सामना किया, लेकिन उन्होंने कभी भगवान राम की सेवा और लोगों की मदद करना बंद नहीं किया। एक बार, जब उनके एक करीबी संबंधी का निधन हुआ, तब भी उन्होंने अन्नदान जारी रखा, क्योंकि उनका मानना था कि सेवा भगवान की भक्ति का सर्वोच्च स्वरूप है। मोरारी बापू का रामकथा जारी रखना, ऐसी ही भक्ति और सेवा की भावना दर्शाता है।
मोरारी बापू के विरोध के पीछे का कारण कट्टरपंथ हो सकता है, लेकिन, हमें भूलना नहीं चाहिए कि हिंदू धर्म में लचीलापन और व्यक्तिगत आध्यात्मिकता को स्थान है। उन्होंने 2002 के गुजरात दंगों के दौरान शांति का संदेश दिया, उत्तराखंड के बाढ़ पीड़ितों को राहत पहुंचाई,और युवक युवतियों के विवाह के लिए आर्थिक मदद की। इनकी सनातनके प्रति निष्ठा पर संदेह करना हमारी समझ की सीमा दर्शाता है। मोरारी बापू की कथाएँ केवल धार्मिक विधि नहीं हैं, बल्कि वे लोगों को नैतिक और आध्यात्मिक मार्गदर्शन देती हैं। उनके शोक की घड़ियों में भी कथा जारी रखना यह दर्शाता है कि वे व्यक्तिगत दुख को एक तरफ रखकर समाज के हित के लिए कार्यरत रहे। यह एक सच्चे संत की निशानी है, जो दुख को भक्ति और सेवा में रूपांतरित करते हैं। अंत में, हमें मोरारी बापू के निर्णय को समझना चाहिए और नरसिंह मेहता तथा जलारामबापा जैसे संतों के जीवन से प्रेरणा लेनी चाहिए। विरोध करने के बजाय, उनकी भक्ति और सेवा का सम्मान करें। मोरारी बापू का जीवन एक उदाहरण है कि धर्म केवल नियमों का पालन नहीं है, बल्कि एक भावना है जो मानवता को उन्नत करती है।
अस्वीकरण: उपर्युक्त विचार लेखक के निजी हैं और प्रकाशन की राय को प्रतिबिंबित नहीं करते।
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स्वच्छता, पवित्रता, प्रसन्नता, स्वतंत्रता और असंगता, यही सच्चे साधु के पंचतत्व हैं: मोरारी बापू

अहमदाबाद (गुजरात), जून 16 :लगाजरडा में श्रीमती नर्मदाबा के भंडारे में विमान दुर्घटना के पीड़ितों को श्रद्धांजलि के साथ मोरारी बापू ने संतों–महंतों की उपस्थिति में व्यक्त किए भाव।
दिनांक 13 जून की संध्या को तलगाजरडा में प्रसिद्ध आध्यात्मिक गुरु और राम कथा वाचक मोरारी बापू की धर्मपत्नी श्रीमती नर्मदाबा के भंडारे के अवसर पर, संतों और महंतों की उपस्थिति में बापू ने सभी के प्रति अपनी भावनाएँ प्रकट कीं और कहा कि स्वच्छता, पवित्रता, प्रसन्नता, स्वतंत्रता और असंगता, यही साधु के पंचतत्व हैं।
अहमदाबाद विमान दुर्घटना की पीड़ा और दिवंगत आत्माओं को श्रद्धांजलि देते हुए, पूज्य मोरारी बापू ने एक आदर्श साधु की परिभाषा देते हुए कहा कि ये पंच गुण एक सच्चे साधु की पहचान हैं। उन्होंने प्रत्येक तत्व पर संक्षिप्त रूप से प्रकाश डाला और जोड़ा कि साधु लाभ के लिए नहीं, बल्कि शुभ के लिए कार्य करता है। उन्होंने यह भी कहा कि समाज द्वारा साधु के प्रति श्रद्धा रहती है, परंतु साधु को सहनशील भी होना पड़ता है।
इस भंडारे में श्री सतुआ बाबा, श्री अंशु बापू, श्री दुर्गादास बापू, श्री ललितकिशोर महाराज, श्री जानकीदास बापू, श्री राम बालकदासजी बापू, श्री निर्मला बा, श्री निजानंदजी स्वामी, श्री दलपतराम पधियारजी, श्री दयागीरी बापू, श्री जयदेवदासजी, श्री राजेंद्रप्रसाद शास्त्री, श्री रामेश्वरदासजी हरियाणी, श्री भक्तिराम बापू, श्री घनश्याम बापू आदि अनेक संत, महंत और कथाकार उपस्थित थे।
भंडारे की विधि में मोरारी बापू और चित्रकूटधाम परिवार के समन्वय से सभी ने प्रार्थना और प्रसाद ग्रहण किया। विमान दुर्घटना को ध्यान में रखते हुए संतवाणी के सभी कार्यक्रम स्थगित कर दिए गए हैं। पूज्य मोरारी बापू ने इस कार्यक्रम को विमान दुर्घटना में दिवंगत आत्माओं को समर्पित किया।
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