राष्ट्रीय
हेलो किड्स प्रीस्कूल चेन ने 1000वां सेंटर खोलकर राष्ट्रीय स्तर पर अपनी उपस्थिति बढ़ाई

नई दिल्ली, 11 मार्च : भारत की पहली नो-रॉयल्टी मॉडल और सबसे बड़ी प्रीस्कूल चेन में से एक, हेलो किड्स ने भारत और बांग्लादेश में 1,000 सेंटर खोलकर एक महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की है। कंपनी की आक्रामक विस्तार योजना के तहत, अगले तीन वर्षों में 2,000 सेंटर खोलने और 2028 तक 100,000 से अधिक बच्चों को प्रारंभिक शिक्षा प्रदान करने का लक्ष्य रखा गया है। वर्तमान में यह प्रीस्कूल चेन बैंगलोर और हैदराबाद में प्रमुख रूप से कार्यरत है, लेकिन जल्द ही भारत के उत्तरी और पश्चिमी क्षेत्रों में भी अपने विस्तार के साथ अग्रणी शहरों में लोकप्रियता हासिल करेगी।
हेलो किड्स: एक प्रेरणादायक सफर
हेलो किड्स की स्थापना प्रीतम कुमार अग्रवाल ने वर्ष 2005 में की थी। बैंगलोर में एक छोटे से प्रीस्कूल से शुरू होकर यह आज दक्षिण भारत और बांग्लादेश में 1,000 से अधिक प्रीस्कूलों के एक मजबूत नेटवर्क के रूप में विकसित हो चुका है। यह यात्रा दृढ़ता, नवाचार और जुनून से भरी रही है।
एक छोटे से गाँव से आने वाले प्रीतम कुमार अग्रवाल ने प्रारंभिक चुनौतियों को पार करते हुए प्रीस्कूल स्थापित करने की बारीकियाँ सीखी। शुरुआती दिनों में वे अकेले ही स्कूल का संचालन करते थे, यहाँ तक कि स्कूल वैन भी खुद चलाते थे। उनके समर्पण को तब और बल मिला जब उनकी पत्नी सुनीता जैन, जो एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं, इस उद्यम से जुड़ीं। इसके बाद यह दंपति तेजी से आगे बढ़ता गया।
फ्रैंचाइज़िंग की शक्ति का लाभ उठाते हुए, हेलो किड्स माता-पिता के लिए एक विश्वसनीय और पसंदीदा ब्रांड बन चुका है। संस्थापक और निदेशक प्रीतम कुमार अग्रवाल ने कहा, “छोटी शुरुआत से लेकर देशभर में एक प्रतिष्ठित नाम बनने तक, हेलो किड्स ने हमेशा गुणवत्तापूर्ण प्रारंभिक शिक्षा को किफायती बनाने पर जोर दिया है। हमारा लक्ष्य 2028 तक 2,000 सेंटर खोलना और प्रारंभिक शिक्षा में उत्कृष्टता बनाए रखना है।”
पुरस्कार और मान्ताएँ
हेलो किड्स को प्रारंभिक बाल शिक्षा में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए कई मान्यताएँ प्राप्त हुई हैं, जिनमें शामिल हैं:
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एजुकेशन वर्ल्ड द्वारा भारत के सबसे सम्मानित बचपन शिक्षा ब्रांड 2022-23 का खिताब।
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एलेट्स वर्ल्ड एजुकेशन समिट 2022 द्वारा अग्रणी प्रीस्कूल चेन के रूप में सम्मान।
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प्रीस्कूल शिक्षाशास्त्र में नवाचार, पाठ्यक्रम उत्कृष्टता और प्रारंभिक बाल शिक्षा में उत्कृष्टता के लिए निरंतर मान्यता।
फ्रैंचाइज़ी पार्टनर्स के लिए अवसर
हेलो किड्स की सफलता का एक महत्वपूर्ण कारण यह है कि यह अपने फ्रैंचाइज़ी भागीदारों को आवश्यक उपकरण और प्रशिक्षण प्रदान करता है। कंपनी विभिन्न क्षेत्रों में व्यापक प्रशिक्षण सत्र आयोजित करती है, जिनमें शामिल हैं:
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पाठ्यक्रम विकास और शिक्षाशास्त्र
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विपणन रणनीतियाँ और सोशल मीडिया सहभागिता
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प्रवेश प्रबंधन और अभिभावक परामर्श
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नवीन शिक्षण विधियाँ जैसे ध्वन्यात्मकता, मोंटेसरी तकनीक, STEM शिक्षा और सामाजिक कौशल विकास
नई शिक्षा नीति (NEP) 2020 के अनुरूप पाठ्यक्रम
हेलो किड्स का पाठ्यक्रम नई शिक्षा नीति (NEP) 2020 के अनुरूप है। इसमें आधुनिक डिजिटल शिक्षण उपकरणों को शामिल किया गया है, जैसे:
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वर्चुअल रियलिटी किट
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डिजिटल स्लेट
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टॉकिंग पेन
इसके अलावा, कंपनी बच्चों के अनुकूल, स्वच्छ वातावरण, सीसीटीवी-निगरानी वाली कक्षाओं और अनुभवी शिक्षकों के माध्यम से एक सुरक्षित और समृद्ध शिक्षण अनुभव प्रदान करती है।
भविष्य की दिशा
हेलो किड्स अपनी नवाचार और उत्कृष्टता की यात्रा जारी रखते हुए, भारत और विदेशों में प्रारंभिक बाल शिक्षा के भविष्य को आकार देने के लिए प्रतिबद्ध है। इस विषय पर अधिक जानकारी के लिए www.hellokids.co.in पर जाएँ।
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आत्मनिर्भर रक्षा का नवयुग: प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में 11 वर्षों की गौरवशाली यात्रा – राधा मोहन सिंह

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यदि भारत ने विश्व पर इंग्लैंड की तरह साम्राज्य स्थापित किया होता

नई दिल्ली, मई 23 : आप कल्पना भी नहीं कर सकते कि यदि भारत ने इंग्लैंड की तरह विश्व पर साम्राज्य स्थापित किया होता; तो भारतीय भाषाएं कितनी समृद्ध होती! जिस तरह आज ‘इंग्लिश’ विश्व पर शासन कर रही है, उसी तरह ही भारतीय भाषाएं भी विश्व पर शासन करती। आज विश्व में अंग्रेज़ी की बजाय ‘भारतीय’ भाषा का ही प्रयोग होता और वह कोई भी एक भारतीय भाषा ही ‘अंतर्राष्ट्रीय’ भाषा होती। जिस प्रकार अंग्रेज़ी के बिना आज लोगों का जीवित रहना भी असंभव जैसा है; यदि भारत ने विश्व पर शासन किया होता, तो भारतीय भाषा के बिना भी लोगों का जीवित रहना असंभव जैसा हो जाता। अंग्रेज़ी की तरह ही लोग चाह कर भारतीय भाषा पढ़ते; क्योंकि, भारत के अधीन होने के कारण, भारतीय भाषा पढ़ना उन की मजबूरी बन जानी थी; जैसे इंग्लैंड के अधीन रहने के कारण अंग्रेज़ी पढ़ना, आज पूरे विश्व की मजबूरी बन गई है। परंतु, विश्व पर साम्राज्य स्थापित करने हेतु तथा उस साम्राज्य को लंबे समय तक कायम रखने हेतु: क्रूरता व कुटिलता जैसे अनैतिक-अधर्म कार्य करने राजनीति की मजबूरी है, जो इंग्लैंड की तरह भारत ने नहीं किए। अनैतिक कार्य करने का फल: इंग्लैंड प्रफुल्लित हो कर भोग रहा है। परंतु, इंग्लैंड के अनैतिक कार्यों के कारण; पूरा विश्व अपनी संस्कृति, भाषाएं, मज़हब आदि खो कर, नैतिकता कारण अधीनगी का फल भोग रहा है। इसी प्रकार से, अनैतिक कार्य न करने का फल: भारत अपनी स्वतंत्रता, भाषाएं, संस्कृति, मज़हब तथा भारत भूमि का बड़ा भाग खो कर भोग रहा है।
विशेष: पाठक जन! इस लेख पर आपत्ति करने से पहले इस का तत्व समझिए। जिस का साम्राज्य हो; उसी की भाषा राजकीय कार्यों में चलती है एवं प्रफुल्लित हो कर लोगों में प्रचलित होती है। क्योंकि, वह भाषा पढ़ना व उस का उपयोग करना: लोगों की मजबूरी बन जाती है। यदि उस का साम्राज्य न भी रहे; तो भी उसी की भाषा, लंबे समय तक अपना प्रभाव रखती है। अंग्रेज़ी का ‘अंतर्राष्ट्रीय भाषा’ बन कर, आज पूरे विश्व के लोगों की आवश्यकता बनने का एक ही विशेष कारण है; इंग्लैंड का विश्व के बहुत बड़े भाग पर साम्राज्य स्थापित करना। यदि आप लेख के इस तत्व को समझ कर, जीवन की सच्चाई को स्वीकार करें गे, तो मेरे विचारों से अवश्य सहमत हो जाएं गे। यदि मेरी बात आप की समझ में नहीं आ रही, आप को स्वीकार नहीं हो रही; तो, अंग्रेज़ी का पूर्ण रूप से बहिष्कार कर के, केवल एक दिन के लिए ही आप जीवित रह कर देखिए। आप को अपने आप ही पता चल जाएगा कि आप अंग्रेज़ी-उपयोग के बिना जीवित ही नहीं रह सकते। विश्व के सभी बड़े साम्राज्य: क्रूरता, हिंसा, कपट, अनैतिक-अधर्म कार्य कर के ही स्थापित हुए हैं; केवल सेवा, पर-उपकार जैसे नैतिक और धर्म कार्य कर के, कोई बड़ा साम्राज्य कभी भी स्थापित नहीं हुआ, ना ही हो सकता है ।
यह सर्व विदित है कि यूरोप के कुछ देशों (इंग्लैंड, फ्रांस, हॉलैंड, स्पेन आदि): विशेष रूप से इंग्लैंड ने, विश्व के अधिकत्तर देशों को गुलाम बना कर, अपना साम्राज्य स्थापित किया था। जिस में से एक बहुत बड़े भाग पर अब तक भी उन्हीं का शासन है, जैसे: ऑस्ट्रेलिया (Australia), कनाडा (Canada) एवं कई छोटे-छोटे देश: इंग्लैंड के अधीन हैं। ग्वाडेलोप (Guadeloupe), गुयाना (Guyana), मैयट (Mayotte), फ्रेंच पोलिनेशिया (French Polynesia) आदि देश: फ्रांस के अधीन हैं। इबेरियन प्रायद्वीप (Iberian Peninsula), कैनरी द्वीप समूह (Canary Islands), उत्तरी अफ्रीका के सेउटा और मेलिला शहर (North African cities of Ceuta and Melilla) आदि क्षेत्र: स्पेन के अधीन हैं।
ऐसा विश्वास किया जाता है कि किसी भी देश के मूल निवासियों पर अत्याचार कर के व गुलाम बना कर, उन का शोषण करना तथा उन पर शासन करना; बहुत बड़ी अनैतिकता तथा अधर्म है, जिस का बहुत बड़ा दंड/पाप: शोषण करने वाले लोगों को लगता है। इन यूरोपीय देशों को उन अनैतिक कुकर्मों का दंड/पाप लगना चाहिए था। परंतु, इस के विपरीत, इन यूरोपीय देशों को इतने बड़े ऐसे अनैतिक/पाप कर्म करने का, यह फल मिला है; कि जहां-जहां भी उन्होंने साम्राज्य स्थापित किया, वहां पर उन की जन संख्या, भाषा, मज़हब तथा संस्कृति प्रफुल्लित हो कर स्थापित हो गये! गुलाम देशों के मूल निवासियों की जन संख्या, भाषा, मज़हब तथा संस्कृति इन विदेशी अत्याचारियों के शासन व गुलामी के कारण लुप्त होने की कगार पर हैं। जिस का प्रत्यक्ष उदाहरण यूरपीयों की अपनी लिखत में ही मिलता है: उत्तरी अमरीका एवं दक्षिणी अमरीका पर अपना साम्राज्य स्थापित करने हेतु, यूरोपीय लोगों ने वहां के 50 लाख से अधिक मूल निवासियों को मारा है।
इस से यह प्रत्यक्ष होता है कि अपनी भाषा व संस्कृति को प्रफुल्लित करने हेतु; विश्व के बड़े भाग पर साम्राज्य स्थापित करना अनिवार्य है। वह साम्राज्य स्थापित करना, केवल नैतिकता या धर्म कार्यों से संभव नहीं। यह भी कटु सत्य है कि कम से कम 50% अनैतिकता तथा क्रूरता से ही साम्राज्य स्थापित होता है तथा स्थापित रहता है; भले ही समाज इस ढंग को कितना भी अनैतिक तथा अपराधिक मानता है। परंतु, साम्राज्य स्थापित कर के, केवल लोगों का शोषण व उन पर अत्याचार करने से कोई भाषा, मज़हब तथा संस्कृति; गुलाम देश के लोगों के जीवन का अंग नहीं बन जाती। जब लंबे समय तक साम्राज्य के मंत्री, अधिकारी तथा उन के लोग; गुलाम हुए देश में रहते हैं; तो जो भाषा वह उपयोग करते हैं और जो कार्य वह करते हैं; गुलाम देश की जनता उन के सभी कार्यों की, अपने आप नकल करने लग जाती है। क्योंकि, मानवी स्वभाव है कि धनहीन प्रजा, धनी व सत्तारूढ़ व्यक्ति की नकल करती है। सब से धनवान और शक्तिशाली तो साम्राज्य का स्वामी और उस के अधिकारी/मंत्री होते हैं। इस प्रकार से, साम्राज्य स्थापित करने वाले देशों की भाषा, मज़हब व संस्कृति भी: बिना अधिक अत्याचार किए, बिना अधिक परिश्रम किए, अपने आप ही गुलाम देश में प्रफुल्लित होने लगते हैं। नकल करने का मानवीय स्वभाव होने के कारण ही, आज पूरे विश्व में इंग्लैंड व यूरोपीय देशों की भाषा, मज़हब व संस्कृति प्रफुल्लित हो कर फैल गए हैं।
इस लिए, जिस ने भी अपनी भाषा, मज़हब तथा सभ्यता को सुरक्षित कर के प्रफुल्लित करना हो; उस के लिए बड़ा सम्राज्य स्थापित करना अत्यंत आवश्यक है। बड़ा सम्राज्य स्थापित करने हेतु, इन यूरपीय देशों जैसे अनैतिक कार्य भी करने पड़ते हैं; तभी सम्राज्य स्थापित होता है, एवं स्थापित रहता है। इस का प्रत्यक्ष उदाहरण है: मानव जाति का पृथ्वी पर साम्राज्य स्थापित कर के, उस पर रहते सभी जीव-जंतुओं एवं वनस्पति पर शासन करना तथा उन का शोषण करना। मानव जाति ने हर प्रकार के अनैतिक, अधर्म कार्य (क्रूरता, कपट आदि) कर के ही, पृथ्वी पर साम्राज्य स्थापित किया है। क्योंकि, मानव सभी जीवों में से अधिक शैतान, क्रूर, कपटी एवं लालची (अधर्मी) है।
अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें:- राजपाल कौर +91 9023150008, तजिंदर सिंह +91 9041000625, रतनदीप सिंह +91 9650066108.
Email: info@namdhari-sikhs.com
राष्ट्रीय
स्किनरेंज विज़न फाउंडेशन ने गुरुग्राम में वंचित बच्चों के लिए निःशुल्क विद्यालय की शुरुआत की

नई दिल्ली, भारत [21-05-2025]: स्किनरेंज विज़न फाउंडेशन, एक पंजीकृत गैर-लाभकारी संस्था, ने एक प्रेरणादायक कदम उठाते हुए अपने पहले फ्री स्कूल की शुरुआत गुरुग्राम के नाथूपुर गांव में की है। यह पहल उन बच्चों के लिए एक नई रोशनी लेकर आई है जो संसाधनों की कमी के कारण शिक्षा से वंचित रह जाते हैं।
इस विद्यालय का उद्देश्य न केवल अकादमिक शिक्षा देना है, बल्कि बच्चों के भावनात्मक, मानसिक और नैतिक विकास को भी बढ़ावा देना है—वो भी पूर्णतः निःशुल्क। संस्था की अध्यक्ष श्रीमती अर्चना चड्ढा के नेतृत्व में यह स्कूल एक ऐसा मॉडल पेश करता है जो शिक्षा को एक अधिकार नहीं बल्कि अवसर में बदलता है।
स्कूल नहीं, एक संकल्प है
“यह सिर्फ एक स्कूल नहीं है, यह उन मासूम सपनों के लिए एक आश्रय है जो साधनों की कमी में दब जाते हैं,” कहती हैं श्रीमती अर्चना चड्ढा, स्किनरेंज विज़न फाउंडेशन की संस्थापक और अध्यक्ष। “हम केवल किताबें नहीं पढ़ा रहे, हम आत्म-विश्वास, नैतिकता और जीवन के मूल्यों की शिक्षा दे रहे हैं।”
इस समय विद्यालय में 70 बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं, जिनकी आयु 5 से 13 वर्ष के बीच है। इनमें से अधिकतर बच्चे पहली बार स्कूल की दहलीज पर कदम रख रहे हैं। बच्चों को यहाँ निम्न सुविधाएं दी जा रही हैं:
- स्कूल यूनिफॉर्म और जूते
- पोषक आहार
- पाठ्यपुस्तकें और स्टेशनरी
- स्वास्थ्य एवं स्वच्छता सहयोग
- मानसिक स्वास्थ्य के लिए सलाह एवं नैतिक शिक्षा
संस्था का लक्ष्य इस वर्ष के अंत तक 200 से अधिक बच्चों तक पहुंच बनाना है, और इस मॉडल को देशभर के अन्य हिस्सों में दोहराना है।
क्यों है यह पहल विशेष?
भारत की असली तरक्की तब तक अधूरी है जब तक हर बच्चा, चाहे वो किसी भी सामाजिक या आर्थिक वर्ग से हो, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा से वंचित है। ASER रिपोर्ट के अनुसार, आज भी लाखों बच्चे या तो स्कूल से बाहर हैं या बेहद कमजोर शिक्षा व्यवस्था में हैं। यह स्कूल उन्हीं चुनौतियों का सीधा समाधान है।
इस पहल के मुख्य स्तंभ हैं:
पीढ़ियों से चली आ रही गरीबी का समाधान:
निरंतर शिक्षा और सहायक वातावरण से बच्चों को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में ठोस कदम।
- लैंगिक समानता पर जोर:
लड़कियों और लड़कों को समान संख्या में दाखिला, साथ ही आत्म-विश्वास, स्वच्छता और जीवन कौशल पर विशेष ध्यान। - संयुक्त राष्ट्र के SDGs से मेल:
यह पहल SDG 4 (गुणवत्तापूर्ण शिक्षा), SDG 5 (लैंगिक समानता), और SDG 3 (स्वास्थ्य एवं कल्याण) के लक्ष्यों को आगे बढ़ाती है। - पारदर्शिता और उत्तरदायित्व:
नियमित प्रगति रिपोर्ट, वित्तीय ऑडिट और स्वतंत्र प्रभाव आकलन के माध्यम से भरोसेमंद संचालन।
एक उम्मीद, एक आंदोलन
स्कूल के पीछे केवल ईंट-पत्थर नहीं, बल्कि 250 से अधिक स्वयंसेवकों का समर्पण है—जिनमें शिक्षक, डॉक्टर, कलाकार और सेवानिवृत्त पेशेवर शामिल हैं। यह स्थान शिक्षा से कहीं अधिक है—यह एक आंदोलन है, जो प्यार, सेवा और परिवर्तन की भावना से प्रेरित है।
अब तक संस्था भारत भर में 5,500 से अधिक लोगों के जीवन को प्रभावित कर चुकी है—चाहे वह स्वास्थ्य शिविर हों, बालिका शिक्षा अभियान, या कोविड के दौरान राहत वितरण। मासिक धर्म जागरूकता से लेकर मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम तक, संस्था की हर पहल करुणा और निरंतरता से जुड़ी है।
CSR और समाजसेवियों से साझेदारी का आमंत्रण
जैसे-जैसे यह स्कूल आगे बढ़ रहा है, स्किनरेंज विज़न फाउंडेशन सभी CSR कंपनियों, दाताओं और समाजसेवियों से जुड़ने का आह्वान करता है। अगर आप किसी कॉरपोरेट, एनजीओ, या व्यक्तिगत रूप से योगदान देना चाहते हैं—तो यह अवसर है कुछ ऐसा करने का जो पीढ़ियों तक असर डाले।
आपका योगदान चाहे वित्तीय, अवसंरचनात्मक, डिजिटल या समय आधारित हो—हर सहयोग किसी बच्चे का जीवन बदल सकता है।
संस्था के बारे में
स्किनरेंज विज़न फाउंडेशन एक स्वतंत्र, पंजीकृत गैर-सरकारी संगठन है, जो भारत में शिक्षा, स्वास्थ्य और नैतिक विकास के क्षेत्रों में जमीनी स्तर पर काम कर रहा है। इसकी प्रेरणा है—“दया और कर्म का संयोग ही बदलाव की सबसे बड़ी शक्ति है।”
दूरदृष्टि से प्रेरित नेतृत्व और नैतिक संचालन के साथ, यह संस्था आज समाज सेवा के क्षेत्र में नई मिसाल कायम कर रही है।
सहयोग या जानकारी के लिए संपर्क करें:
वेबसाइट: www.skvision.org
ईमेल: info@skvision.org
आइए मिलकर एक ऐसे भारत की नींव रखें, जहाँ हर बच्चा सपने देख सके, सीख सके और जीवन में आगे बढ़ सके।
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