Connect with us

प्रेस विज्ञप्ति

दुर्योधन ये एक गलती ना करता तो महाभारत जीत जाता : डॉ विवेक बिंद्रा

Published

on

जब भी व्यक्ति जीवन में असफलता का सामना करता है तो वो उसका दोष या तो वक़्त को देता है या फिर किसी दूसरे व्यक्ति को देता है, लेकिन वो स्वयं के अंदर झाँककर देखने का प्रयास तक नहीं करता। जबकि उसकी असफलता का कारण उसकी अपनी अज्ञानता ही होती है क्योंकि उसने कभी भी अपनी ताकत और कमज़ोरियों पर गौर ही नहीं किया होता है ।  

मतलब जिस व्यक्ति को अपनी कमियों और खूबियों का एहसास नहीं होता उसकी हार निश्चित है, ये बात भगवान श्रीकृष्ण ने भगवदगीता के अंदर भी कही है, गीता के पहले अध्याय के तीसरे श्लोक में इस बात को समझाया गया है।

 

पश्यैतां पाण्डुपुत्राणामाचार्य महतीं चमूम् ।

व्यूढां द्रुपदपुत्रेण तव शिष्येण धीमता ।। ३।।

 

महाभारत के युद्ध में गुरु द्रोण कौरवों की ओर से युद्ध लड़ रहे थे और पांडवों की ओर से द्रुपद के पुत्र दृस्टिद्युम सेनापति का कार्यभार संभाल रहे थे। दृस्टिद्युम का जन्म ही गुरु द्रोणाचार्य का वध करने के लिए हुआ था। लेकिन फिर भी उन्होंने दृस्टिद्युम को समस्त युद्ध विद्या का ज्ञान दे दिया था। इस पर दुर्योधन गुरु द्रोणाचार्य से कहते हैं, देखो जिस शिष्य को आपने युद्ध के लिए शिक्षा दी थी आज वही आपके सामने आकर खड़ा हो गया है।  

 

ऐसा कहते समय दुर्योधन का तात्पर्य गुरु द्रोणाचार्य पर तंज कसना था। साथ ही ये एहसास दिलाना भी था कि आपने बहुत बड़ी गलती कर दी है। आप जानते थे कि दृस्टिद्युम आपकी मृत्यु का कारण बनेगा, लेकिन फिर भी आपने उसे शिक्षा दी।  

 

यहाँ पर दुर्योधन जब गुरु द्रोणाचार्य को उनकी गलती का एहसास दिला रहे हैं। उनका अपमान कर रहे हैं लेकिन साथ ही साथ खुद भी एक गलती कर रहे हैं।  इस अवसर पर दुर्योधन को गुरु द्रोणाचार्य को उनकी गलती और कमज़ोरी का एहसास दिलाने के बजाय दृस्टिद्युम की कमज़ोरियों के बारे में पूछना चाहिए था। 

ये जानने का प्रयास करना चाहिए था कि ऐसा कौन सा ज्ञान है जो कौरवों के पास है और दृस्टिद्युम के पास नहीं है। लेकिन अपने अभद्र व्यवहार और अहम के कारण दुर्योधन ने गुरु द्रोणाचार्य से दृस्टिद्युम की कमजोरियों के जानने के बजाए, उलटा उन्हें ही ताना देकर उनका अपमान करके उनके साहस कम करने का काम किया।  

 

यहाँ पर हम गीता के इस श्लोक से ये समझ सकते हैं कि जीत के लिए हमें अपने कॉम्पिटिशन में खड़े व्यक्ति की कमियों का पता लगाना चाहिए, उसी को ध्यान में रखते हुए अपने प्लान को बनाना चाहिए ताकि आपकी जीत की गुंजाइश और भी बढ़ जाए। 

 

वहीं दूसरी ओर जीत के लिए एक सीख ये भी है कि अपने विरोधी को अपनी कमज़ोरी का एहसास ना होने दें क्योंकि फिर आपकी कमज़ोरी उसकी ताकत बन जाएगी। इसलिए सफलता के लिए अपनी और विरोधी दोनों की ताकत और कमज़ोरी को बड़े ही ध्यान से समझना चाहिए। उसी के हिसाब से रणनीति बनानी चाहिए तभी आपको जीत हासिल होगी।  

 

चाणक्य पंडित को जब नंदा साम्राज्य को मिटाकर मौर्य साम्राज्य को स्थापित करना था तब उन्होंने सबसे पहले अपनी कमजोरी को समझा, वो जानते थे युद्ध करके वो नंदा साम्राज्य को हरा नहीं सकते क्योंकि उनके पास सेना नहीं है। तब उन्होंने अपनी एक ताकत को बनाया, कुछ लड़कियों को बचपन से थोड़ा थोड़ा ज़हर देकर विषकन्या में परिवर्तित किया। 

 

बाद में उन्हें कन्याओं को नंदा साम्राज्य के राजाओं के पास भेजा, अय्याशी में चूर नंदा साम्राज्य के राजा उन कन्याओं के रूप जाल में फंस गए, जिसका नतीजा ये हुआ कि उन कन्याओं ने अपने केवल एक ही चुंबन से उन राजाओं का अंत कर दिया। इससे कहानी से पता चलता है कि अगर अपनी ताकत और कमज़ोरी के साथ साथ अगर दुश्मन की ताकत और कमज़ोरी को भी समझ लिया जाए तो सफलता बड़ी आसानी से हासिल की जा सकती है। 

 

बिजनेस के क्षेत्र में भी यही सीख काम आती है। मार्केट में मौजूद अपने कॉम्पिटीटर की ताकत और कमज़ोरियों का अध्ययन करके अपनी प्लानिंग करनी चाहिए। इससे आप समझ पाएंगे की कौन-सी परिस्थिति में आपका कॉम्पिटीटर कैसे काम करेगा। आपकी यही दूरदर्शिता आपकी सक्सेस का रास्ता बनेगी और आप जल्दी से जल्दी अपनी सफलता के पास पहुँच जायेंगे। आज के समय में अपने बिजनेस की समस्यायों को सुलझाने के लिए आप  बीबी कोचकी भी हेल्प ले सकते है. 

आज के समय में किसी कम्पनी की कमियां अगर आपको समझनी हैं तो उसके सोशल मीडिया अकाउंट के कमेंट्स मात्र को देखकर कमियों का अंदाजा लगा सकते हैं। उसके प्रोडक्ट के रिव्यूज को देखिये, आपको बड़ी आसानी से समझ आ जायेगा कि आपके कॉम्पिटिटर की कम्पनी की कमियां क्या हैं? जिसके बाद उन्हीं के सुधार के साथ आप खुद को मार्केट में बेहतर ढंग से साबित कर सकते हैं।  

 

दुर्योधन को भी महाभारत के युद्ध में यही करना चाहिए था। गुरु द्रोण को ताना कसने के बजाय उनके अनुभव का फायदा उठाते हुए पांडवों की कमियां पता करनी चाहिए थी। साथ ही अपनी पूरी शक्ति के साथ उन पर वार करना चाहिए था। लेकिन ऐसा ना करने का नतीजा आज पूरा संसार जानता है। 

 

Continue Reading
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

राष्ट्रीय

आत्मनिर्भर रक्षा का नवयुग: प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में 11 वर्षों की गौरवशाली यात्रा – राधा मोहन सिंह

Published

on

दिल्ली :  सांसद, रक्षा मामलों की स्थायी समिति के अध्यक्ष एवं पूर्व कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह ने कहा कि पिछले 11 वर्षों में भारत की रक्षा नीति में जो क्रांतिकारी परिवर्तन आया है, वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दूरदर्शी नेतृत्व की देन है। आज हम गर्व से कह सकते हैं कि आत्मनिर्भर भारत का स्वप्न अब रक्षा क्षेत्र में साकार होता दिखाई दे रहा है।
उन्होंने आगे कहा कि 2014 में जब श्री मोदी ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी, तब भारत विश्व का सबसे बड़ा रक्षा आयातक था। हमारी सेनाएँ आधुनिक तो थीं, परंतु अनेक महत्वपूर्ण हथियार प्रणालियाँ और उपकरण विदेशों से आयातित होते थे। आज स्थिति यह है कि भारत 85 से अधिक देशों को रक्षा उपकरण निर्यात कर रहा है, और तेजस लड़ाकू विमान, INS विक्रांत, आकाश मिसाइल प्रणाली और ATAGS जैसी स्वदेशी प्रणालियाँ हमारी रक्षा आत्मनिर्भरता का प्रतीक बन चुकी हैं।
प्रधानमंत्री मोदी ने “मेक इन इंडिया” को केवल एक नारा नहीं, बल्कि एक मिशन बनाया। उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु में रक्षा औद्योगिक कॉरिडोर का निर्माण, FDI की सीमा में वृद्धि, निजी क्षेत्र की भागीदारी और रक्षा स्टार्टअप्स को प्रोत्साहन—इन सभी प्रयासों से रक्षा उत्पादन में भारत की आत्मनिर्भरता का मार्ग प्रशस्त हुआ।
‘पॉजिटिव इंडीजेनाइजेशन लिस्ट’ के अंतर्गत अब तक 500 से अधिक वस्तुएँ चिन्हित की जा चुकी हैं जिन्हें केवल घरेलू स्रोतों से खरीदा जाएगा। यह न केवल देश की आर्थिक समृद्धि का मार्ग है, बल्कि सामरिक आत्मनिर्भरता का आधार भी है।
इस सबके बीच, भारत की समुद्री शक्ति का प्रतीक—INS विक्रांत—देश की पहली स्वदेशी एयरक्राफ्ट कैरियर, भारत के सामर्थ्य का प्रमाण है। यह केवल एक युद्धपोत नहीं, बल्कि आत्मनिर्भर भारत की क्षमता और संकल्प का उदाहरण है।
साथ ही, मैं इस अवसर पर ऑपरेशन सिन्दूर को सफलतापूर्वक संपन्न करने वाले हमारे वीर सैनिकों को हृदय से धन्यवाद देता हूँ। यह ऑपरेशन हमारी सेना, नौसेना और वायुसेना के अद्वितीय समन्वय, युद्ध कौशल और त्वरित प्रतिक्रिया क्षमता का प्रतीक है। यह मिशन इस बात का प्रमाण है कि हमारी सेनाएँ अब किसी भी चुनौती का सामना करने में पूर्णतः सक्षम हैं—वह भी स्वदेशी तकनीकों और संसाधनों के साथ।
ऑपरेशन सिन्दूर में हमारे सैनिकों ने जिस समर्पण, धैर्य और दक्षता का परिचय दिया, उस पर देश को गर्व है। मैं रक्षा मामलों की समिति के अध्यक्ष के रूप में, और एक देशवासी के रूप में, तीनों सेनाओं के हर जवान को कोटि-कोटि नमन करता हूँ।
आज हमारे सैनिक अत्याधुनिक हथियारों, संचार प्रणालियों और रणनीतिक सहायता से सुसज्जित हैं। सीमाओं पर आधुनिक इंफ्रास्ट्रक्चर, त्वरित आपूर्ति श्रृंखला और सामरिक तैयारियों ने हमारी सेनाओं की युद्ध शक्ति को कई गुना बढ़ा दिया है। प्रधानमंत्री मोदी जी के नेतृत्व में सेना का मनोबल पहले से कहीं अधिक ऊँचा हुआ है।
भारत अब केवल अपनी सीमाओं की रक्षा करने वाला राष्ट्र नहीं है, बल्कि इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में एक “नेट सिक्योरिटी प्रोवाइडर” के रूप में उभर रहा है। आत्मनिर्भरता पर आधारित सामरिक स्वतंत्रता की हमारी नीति को वैश्विक मान्यता मिल रही है।
राधा मोहन सिंह अपनी बात को जारी रखते हुए आगे कहा कि इन 11 वर्षों की यात्रा को देखते हुए हम कह सकते हैं कि भारत अब रक्षा निर्माण में न केवल आत्मनिर्भर बन रहा है, बल्कि आने वाले समय में विश्व के प्रमुख रक्षा निर्यातकों में शामिल होने की ओर भी अग्रसर है।
अंत में, मैं एक बार पुनः ऑपरेशन सिन्दूर में भाग लेने वाले सभी सैनिकों को, और पूरे सशस्त्र बलों को नमन करता हूँ। आप सभी के परिश्रम, त्याग और शौर्य से भारत गौरवान्वित है। आइए हम सब मिलकर संकल्प लें कि आत्मनिर्भर भारत के इस मार्ग को और भी दृढ़ता आगे बढ़ाएँगे
मोदी सरकार में भारतीय रेलवे ने रचा नया इतिहास: राधा मोहन सिंह
संसदीय रक्षा समिति के अध्यक्ष, वरिष्ठ सांसद और पूर्व केंद्रीय कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह ने भारतीय रेल के पिछले एक दशक में हुए ऐतिहासिक परिवर्तन की सराहना करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय रेलवे ने आत्मनिर्भरता, नवाचार और समावेशी विकास का प्रतीक बनकर उभरने का कार्य किया है।
“भारतीय रेल अब सिर्फ परिवहन का साधन नहीं, बल्कि नए भारत की पहचान बन गई है — जो वैश्विक प्रतिस्पर्धा, सामाजिक समरसता और हरित विकास का प्रतीक है,” श्री सिंह ने कहा।
 
उन्होंने निम्नलिखित प्रमुख उपलब्धियों को रेखांकित किया:
* रेलवे लाइनों का तेज़ी से विद्युतीकरण, जिससे ऊर्जा दक्षता और पर्यावरणीय अनुकूलता में सुधार
* समर्पित माल ढुलाई कॉरिडोर, जिससे लॉजिस्टिक्स लागत में कमी और यात्री मार्गों में भीड़ घटाई गई
* कश्मीर घाटी और पूर्वोत्तर जैसे दुर्गम क्षेत्रों में नई रेल लाइनों का निर्माण
* वंदे भारत एक्सप्रेस — भारत की पहली अर्ध-तेज गति की स्वदेशी ट्रेन, जिसने विश्वस्तरीय यात्रा अनुभव प्रदान किया
* अमृत भारत योजना के अंतर्गत 1,300+ स्टेशनों का कायाकल्प — आधुनिक प्रतीक्षालय, एस्केलेटर, स्वच्छ शौचालय आदि सुविधाएं
* कोचों में जैव-शौचालयों की शुरुआत — स्वच्छ भारत मिशन को प्रोत्साहन
* सुरक्षा क्षेत्र में प्रगति — सभी अनियंत्रित लेवल क्रॉसिंग का उन्मूलन, ‘कवच’ जैसी स्वदेशी सुरक्षा प्रणाली का उपयोग, सीसीटीवी और गश्त में वृद्धि
* रेलवे के लिए ₹2.5 लाख करोड़ से अधिक का पूंजीगत व्यय, जो नए कॉरिडोर, रोलिंग स्टॉक उन्नयन, सुरक्षा और अधूरी परियोजनाओं को पूरा करने के लिए समर्पित है
श्री सिंह ने कहा कि इन प्रयासों के पीछे विकसित भारत@2047 के लक्ष्य को मूर्त रूप देने की व्यापक दृष्टि है।
उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि आगे की चुनौतियाँ भी महत्वपूर्ण हैं — जैसे कि दूरस्थ क्षेत्रों तक अंतिम मील संपर्क, निरंतर आधुनिकीकरण, पर्यावरणीय संतुलन, और सभी वर्गों के यात्रियों को श्रेष्ठ अनुभव देना। लेकिन उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि नीति निर्माताओं, रेलवे कर्मियों और देशवासियों के सामूहिक प्रयास से भारतीय रेल इन चुनौतियों को पार कर सकती है।
“हम सिर्फ पुल और पटरियाँ नहीं बना रहे, हम भारत के नए भविष्य की नींव रख रहे हैं,” श्री सिंह ने कहा।हा।
Continue Reading

राष्ट्रीय

यदि भारत ने विश्व पर इंग्लैंड की तरह साम्राज्य स्थापित किया होता

Published

on

नई दिल्ली, मई 23 : आप कल्पना भी नहीं कर सकते कि यदि भारत ने इंग्लैंड की तरह विश्व पर साम्राज्य स्थापित किया होता; तो भारतीय भाषाएं कितनी समृद्ध होती! जिस तरह आज ‘इंग्लिश’ विश्व पर शासन कर रही है, उसी तरह ही भारतीय भाषाएं भी विश्व पर शासन करती। आज विश्व में अंग्रेज़ी की बजाय ‘भारतीय’ भाषा का ही प्रयोग होता और वह कोई भी एक भारतीय भाषा ही ‘अंतर्राष्ट्रीय’ भाषा होती। जिस प्रकार अंग्रेज़ी के बिना आज लोगों का जीवित रहना भी असंभव जैसा है; यदि भारत ने विश्व पर शासन किया होता, तो भारतीय भाषा के बिना भी लोगों का जीवित रहना असंभव जैसा हो जाता। अंग्रेज़ी की तरह ही लोग चाह कर भारतीय भाषा पढ़ते; क्योंकि, भारत के अधीन होने के कारण, भारतीय भाषा पढ़ना उन की मजबूरी बन जानी थी; जैसे इंग्लैंड के अधीन रहने के कारण अंग्रेज़ी पढ़ना, आज पूरे विश्व की मजबूरी बन गई है। परंतु, विश्व पर साम्राज्य स्थापित करने हेतु तथा उस साम्राज्य को लंबे समय तक कायम रखने हेतु: क्रूरता व कुटिलता जैसे अनैतिक-अधर्म कार्य करने राजनीति की मजबूरी है, जो इंग्लैंड की तरह भारत ने नहीं किए। अनैतिक कार्य करने का फल: इंग्लैंड प्रफुल्लित हो कर भोग रहा है। परंतु, इंग्लैंड के अनैतिक कार्यों के कारण; पूरा विश्व अपनी संस्कृति, भाषाएं, मज़हब आदि खो कर, नैतिकता कारण अधीनगी का फल भोग रहा है। इसी प्रकार से, अनैतिक कार्य न करने का फल: भारत अपनी स्वतंत्रता, भाषाएं, संस्कृति, मज़हब तथा भारत भूमि का बड़ा भाग खो कर भोग रहा है।

विशेष: पाठक जन! इस लेख पर आपत्ति करने से पहले इस का तत्व समझिए। जिस का साम्राज्य हो; उसी की भाषा राजकीय कार्यों में चलती है एवं प्रफुल्लित हो कर लोगों में प्रचलित होती है। क्योंकि, वह भाषा पढ़ना व उस का उपयोग करना: लोगों की मजबूरी बन जाती है। यदि उस का साम्राज्य न भी रहे; तो भी उसी की भाषा, लंबे समय तक अपना प्रभाव रखती है। अंग्रेज़ी का ‘अंतर्राष्ट्रीय भाषा’ बन कर, आज पूरे विश्व के लोगों की आवश्यकता बनने का एक ही विशेष कारण है; इंग्लैंड का विश्व के बहुत बड़े भाग पर साम्राज्य स्थापित करना। यदि आप लेख के इस तत्व को समझ कर, जीवन की सच्चाई को स्वीकार करें गे, तो मेरे विचारों से अवश्य सहमत हो जाएं गे। यदि मेरी बात आप की समझ में नहीं आ रही, आप को स्वीकार नहीं हो रही; तो, अंग्रेज़ी का पूर्ण रूप से बहिष्कार कर के, केवल एक दिन के लिए ही आप जीवित रह कर देखिए। आप को अपने आप ही पता चल जाएगा कि आप अंग्रेज़ी-उपयोग के बिना जीवित ही नहीं रह सकते। विश्व के सभी बड़े साम्राज्य: क्रूरता, हिंसा, कपट, अनैतिक-अधर्म कार्य कर के ही स्थापित हुए हैं; केवल सेवा, पर-उपकार जैसे नैतिक और धर्म कार्य कर के, कोई बड़ा साम्राज्य कभी भी स्थापित नहीं हुआ, ना ही हो सकता है ।

यह सर्व विदित है कि यूरोप के कुछ देशों (इंग्लैंड, फ्रांस, हॉलैंड, स्पेन आदि): विशेष रूप से इंग्लैंड ने, विश्व के अधिकत्तर देशों को गुलाम बना कर, अपना साम्राज्य स्थापित किया था। जिस में से एक बहुत बड़े भाग पर अब तक भी उन्हीं का शासन है, जैसे: ऑस्ट्रेलिया (Australia), कनाडा (Canada) एवं कई छोटे-छोटे देश: इंग्लैंड के अधीन हैं। ग्वाडेलोप (Guadeloupe), गुयाना (Guyana), मैयट (Mayotte), फ्रेंच पोलिनेशिया (French Polynesia) आदि देश: फ्रांस के अधीन हैं। इबेरियन प्रायद्वीप (Iberian Peninsula), कैनरी द्वीप समूह (Canary Islands), उत्तरी अफ्रीका के सेउटा और मेलिला शहर (North African cities of Ceuta and Melilla) आदि क्षेत्र: स्पेन के अधीन हैं।

ऐसा विश्वास किया जाता है कि किसी भी देश के मूल निवासियों पर अत्याचार कर के व गुलाम बना कर, उन का शोषण करना तथा उन पर शासन करना; बहुत बड़ी अनैतिकता तथा अधर्म है, जिस का बहुत बड़ा दंड/पाप: शोषण करने वाले लोगों को लगता है। इन यूरोपीय देशों को उन अनैतिक कुकर्मों का दंड/पाप लगना चाहिए था। परंतु, इस के विपरीत, इन यूरोपीय देशों को इतने बड़े ऐसे अनैतिक/पाप कर्म करने का, यह फल मिला है; कि जहां-जहां भी उन्होंने साम्राज्य स्थापित किया, वहां पर उन की जन संख्या, भाषा, मज़हब तथा संस्कृति प्रफुल्लित हो कर स्थापित हो गये! गुलाम देशों के मूल निवासियों की जन संख्या, भाषा, मज़हब तथा संस्कृति इन विदेशी अत्याचारियों के शासन व गुलामी के कारण लुप्त होने की कगार पर हैं। जिस का प्रत्यक्ष उदाहरण यूरपीयों की अपनी लिखत में ही मिलता है: उत्तरी अमरीका एवं दक्षिणी अमरीका पर अपना साम्राज्य स्थापित करने हेतु, यूरोपीय लोगों ने वहां के 50 लाख से अधिक मूल निवासियों को मारा है।

इस से यह प्रत्यक्ष होता है कि अपनी भाषा व संस्कृति को प्रफुल्लित करने हेतु; विश्व के बड़े भाग पर साम्राज्य स्थापित करना अनिवार्य है। वह साम्राज्य स्थापित करना, केवल नैतिकता या धर्म कार्यों से संभव नहीं। यह भी कटु सत्य है कि कम से कम 50% अनैतिकता तथा क्रूरता से ही साम्राज्य स्थापित होता है तथा स्थापित रहता है; भले ही समाज इस ढंग को कितना भी अनैतिक तथा अपराधिक मानता है। परंतु,  साम्राज्य स्थापित कर के, केवल लोगों का शोषण व उन पर अत्याचार करने से कोई भाषा, मज़हब तथा संस्कृति; गुलाम देश के लोगों के जीवन का अंग नहीं बन जाती। जब लंबे समय तक साम्राज्य के मंत्री, अधिकारी तथा उन के लोग; गुलाम हुए देश में रहते हैं; तो जो भाषा वह उपयोग करते हैं और जो कार्य वह करते हैं; गुलाम देश की जनता उन के सभी कार्यों की, अपने आप नकल करने लग जाती है। क्योंकि, मानवी स्वभाव है कि धनहीन प्रजा, धनी व सत्तारूढ़ व्यक्ति की नकल करती है। सब से धनवान और शक्तिशाली तो साम्राज्य का स्वामी और उस के अधिकारी/मंत्री होते हैं। इस प्रकार से, साम्राज्य स्थापित करने वाले देशों की भाषा, मज़हब व संस्कृति भी: बिना अधिक अत्याचार किए, बिना अधिक परिश्रम किए, अपने आप ही गुलाम देश में प्रफुल्लित होने लगते हैं। नकल करने का मानवीय स्वभाव होने के कारण ही, आज पूरे विश्व में इंग्लैंड व यूरोपीय देशों की भाषा, मज़हब व संस्कृति प्रफुल्लित हो कर फैल गए हैं।

इस लिए, जिस ने भी अपनी भाषा, मज़हब तथा सभ्यता को सुरक्षित कर के प्रफुल्लित करना हो; उस के लिए बड़ा सम्राज्य स्थापित करना अत्यंत आवश्यक है। बड़ा सम्राज्य स्थापित करने हेतु, इन यूरपीय देशों जैसे अनैतिक कार्य भी करने पड़ते हैं; तभी सम्राज्य स्थापित होता है, एवं स्थापित रहता है। इस का प्रत्यक्ष उदाहरण है: मानव जाति का पृथ्वी पर साम्राज्य स्थापित कर के, उस पर रहते सभी जीव-जंतुओं एवं वनस्पति पर शासन करना तथा उन का शोषण करना। मानव जाति ने हर प्रकार के अनैतिक, अधर्म कार्य (क्रूरता, कपट आदि) कर के ही, पृथ्वी पर साम्राज्य स्थापित किया है। क्योंकि, मानव सभी जीवों में से अधिक शैतान, क्रूर, कपटी एवं लालची (अधर्मी) है।

अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें:- राजपाल कौर +91 9023150008, तजिंदर सिंह +91 9041000625, रतनदीप सिंह +91 9650066108.

Email: info@namdhari-sikhs.com

Continue Reading

शिक्षा

हिंदी भाषा और व्याकरण: मानवीय संस्कारों से रोज़गार तक की यात्रा

Published

on

नई दिल्ली : भाषा केवल संप्रेषण का माध्यम नहीं होती, बल्कि यह समाज की आत्मा, संस्कृति की वाहक और मानवीय संवेदनाओं की अभिव्यक्ति का सबसे सशक्त साधन होती है। हिंदी, हमारी मातृभाषा, न केवल भारत के विशाल भूभाग में संवाद का माध्यम है, बल्कि यह करोड़ों लोगों की पहचान, सोच और संस्कारों की वाहिका भी है। भाषा की आत्मा उसका व्याकरण होता है, जो उसे शुद्धता, स्पष्टता और सौंदर्य प्रदान करता है। हिंदी भाषा और व्याकरण का यह संगम न केवल भावनाओं की अभिव्यक्ति करता है, बल्कि व्यक्ति को सामाजिक, नैतिक व व्यावसायिक स्तर पर दक्ष, सक्षम और संवेदनशील बनाता है।

1. भाषा और व्याकरण: संस्कारों का आधार

बचपन में जब कोई बालक भाषा सीखता है, तो वह केवल शब्दों और वाक्यों को नहीं, बल्कि व्यवहार, संस्कृति और मूल्यों को आत्मसात करता है। ‘नमस्ते’ कहना, बड़ों को ‘आप’ कहकर संबोधित करना, संवाद में विनम्रता रखना — ये केवल भाषायी क्रियाएं नहीं हैं, ये हमारी सामाजिक चेतना के अंग हैं।

हिंदी व्याकरण में मौजूद ‘संबोधन विभक्ति’, ‘क्रियाओं की विनम्रता’ और ‘शुद्ध उच्चारण’ केवल तकनीकी बातें नहीं हैं, बल्कि ये संवाद की मर्यादा और आदर-संवोधन की गूढ़ समझ भी प्रदान करती हैं।

भाषा में व्याकरण वही भूमिका निभाता है, जो शरीर में रीढ़ की हड्डी निभाती है। वह भाषा को संरचना, संतुलन और सौंदर्य प्रदान करता है। सही व्याकरण से युक्त भाषा न केवल स्पष्ट होती है, बल्कि वह सामाजिक व्यवहार का दर्पण भी बनती है।

2. भावनात्मक बौद्धिकता और भाषा

आज के युग में ‘भावनात्मक बुद्धिमत्ता’ (Emotional Intelligence) को सफलता का अनिवार्य गुण माना जाता है। यह केवल निर्णय लेने या संकट में संतुलन बनाए रखने की क्षमता नहीं, बल्कि दूसरों की बात समझने, संवेदना व्यक्त करने और सहयोग की भावना को विकसित करने का माध्यम भी है।

हिंदी भाषा, विशेषकर उसकी काव्यात्मकता, मुहावरों, लोकोक्तियों और संवाद शैली के माध्यम से यह भावनात्मक समझ उत्पन्न करती है। एक संवेदनशील भाषा के रूप में हिंदी अपने वक्ता को एक बेहतर श्रोता, सहकर्मी, नेता और नागरिक बनने की क्षमता देती है।

3. रोजगार के बदलते परिदृश्य में भाषा की भूमिका

21वीं सदी का रोजगार बाजार केवल डिग्रियों और तकनीकी ज्ञान के आधार पर निर्णय नहीं लेता। अब कंपनियां और संस्थाएं ऐसे व्यक्तियों को प्राथमिकता देती हैं जो प्रभावी संवाद कर सकें, टीम में काम कर सकें, और विभिन्न भाषायी-सांस्कृतिक संदर्भों को समझते हुए व्यावसायिक संबंध बना सकें।

कुछ प्रमुख क्षेत्रों में हिंदी भाषा का प्रभावी योगदान:

  • शिक्षा एवं शोध: आज शैक्षणिक संस्थानों में विषयवस्तु को मातृभाषा में समझाना, शोध करना और विद्यार्थियों से संवाद करना एक महत्वपूर्ण कौशल है। हिंदी में लेखन, प्रस्तुति और अध्यापन की क्षमता आपको इस क्षेत्र में अग्रणी बना सकती है।

  • पत्रकारिता एवं मीडिया: हिंदी पत्रकारिता देश के सबसे बड़े मीडिया उपभोक्ताओं में से एक को संबोधित करती है। प्रिंट, डिजिटल और टेलीविजन मीडिया में शुद्ध, सटीक और प्रभावी हिंदी लेखन व वाचन कौशल की भारी मांग है।

  • सृजनात्मक लेखन एवं अनुवाद: साहित्य, पटकथा लेखन, वेब सीरीज़, विज्ञापन, फिल्म आदि में हिंदी की सृजनात्मकता की अपार संभावना है। इसके अतिरिक्त, क्षेत्रीय भाषाओं और वैश्विक भाषाओं से हिंदी में अनुवाद एक उभरता हुआ पेशेवर क्षेत्र है।

  • प्रशासनिक सेवाएं: सिविल सेवा परीक्षा सहित अनेक प्रशासनिक सेवाओं में हिंदी भाषा में गहरी समझ और प्रभावी अभिव्यक्ति सफलता की कुंजी बन सकती है।

  • कॉर्पोरेट व जनसंपर्क: बहुराष्ट्रीय कंपनियों और स्थानीय संस्थाओं को ऐसे लोग चाहिए जो हिंदी में ग्राहकों से संवाद कर सकें, रिपोर्ट तैयार कर सकें और अंदरूनी टीमों के बीच पुल बना सकें।

4. व्याकरण: दक्षता और विश्वसनीयता का आधार

आज जब डिजिटल और वैश्विक संवाद तेज़ी से बढ़ रहा है, सही भाषा और व्याकरण की आवश्यकता और भी महत्वपूर्ण हो गई है। सोशल मीडिया पोस्ट, ईमेल, रिपोर्ट, प्रस्तुतियाँ — सबमें भाषा की स्पष्टता और शुद्धता ही व्यक्ति की विशेषज्ञता और विश्वसनीयता दर्शाती है।

हिंदी व्याकरण जैसे समास, कारक, काल, वाच्य, अलंकार आदि न केवल भाषा को समृद्ध बनाते हैं, बल्कि व्यक्ति के चिंतन और अभिव्यक्ति को गहराई और सौंदर्य प्रदान करते हैं। व्याकरण के अभ्यास से तार्किक क्षमता, एकाग्रता और अनुशासन का विकास होता है — जो किसी भी क्षेत्र में सफलता के लिए आवश्यक हैं।

5. डिजिटल युग और हिंदी भाषा

आज डिजिटल क्रांति के युग में हिंदी अपनी नई पहचान बना रही है। मोबाइल एप्स, वेबसाइट्स, ब्लॉग्स, यूट्यूब चैनल्स, पॉडकास्ट्स और सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म्स पर हिंदी के उपयोग ने लाखों युवाओं को न केवल अपनी बात कहने का मंच दिया है, बल्कि उन्हें स्वतंत्र, रचनात्मक और आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर भी बनाया है।

हिंदी कंटेंट क्रिएटर, ट्रांसक्रिप्शन विशेषज्ञ, डिजिटल मार्केटर, सोशल मीडिया मैनेजर जैसे अनेक नए प्रोफेशनल रोल हिंदी भाषा-ज्ञान पर आधारित हैं। ऐसे में हिंदी भाषा और व्याकरण का सशक्त ज्ञान, डिजिटल युग के अवसरों का लाभ उठाने में सहायक बनता है।

6. भाषा और व्यक्तित्व विकास

हिंदी भाषा केवल करियर का साधन नहीं, यह हमारे व्यक्तित्व का निर्माण करती है। वह हमें अभिव्यक्ति की शक्ति, विचारों की गहराई और संवाद की मर्यादा सिखाती है। एक ऐसा व्यक्ति जो प्रभावी ढंग से हिंदी में विचार रख सकता है, उसमें आत्मविश्वास, नेतृत्व क्षमता और संवेदनशीलता जैसे गुण स्वतः विकसित होते हैं।

व्याकरण की समझ व्यक्ति को केवल भाषायी रूप से सक्षम नहीं बनाती, बल्कि वह तार्किक, संयमित और विवेकशील भी बनाता है।

हिंदी भाषा और उसका व्याकरण केवल शैक्षिक विषय नहीं हैं, बल्कि ये मानवीय जीवन की संरचना के मूल आधार हैं। ये हमें केवल शब्दों की दुनिया में दक्ष नहीं बनाते, बल्कि संस्कार, सह-अस्तित्व, संवाद और सहिष्णुता जैसे गुणों से समृद्ध करते हैं। आज जब भविष्य की दुनिया बहुभाषायी, भावनात्मक और संवाद-प्रधान होती जा रही है, हिंदी भाषा और व्याकरण की भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो जाती है।

हमें यह समझना होगा कि भाषा केवल रोज़गार का साधन नहीं, बल्कि एक समृद्ध, सुसंस्कृत और सार्थक जीवन की कुंजी भी है। यदि हम हिंदी भाषा और व्याकरण को अपने जीवन में आदरपूर्वक स्थान दें, तो हम न केवल एक सफल पेशेवर बन सकते हैं, बल्कि एक सजग, सुसंस्कृत और सहृदय नागरिक भी बन सकते हैं।

  • ©® डॉ ऋषि शर्मा

  • प्रकाशन प्रबंधक भाषा

  • न्यू सरस्वती हाउस प्रकाशन

  • प्रमुख संपादक गुंजार, गूँज हिंदी की, शैक्षिक त्रैमासिक पत्रिका।

  • संस्थापक: हिंदगी ,हिंदी है ज़िंदगी समूह

Continue Reading

Trending