लाइफस्टाइल
महिला सशक्तिकरण की बात सब करते हैं, डॉ. विशाखा त्रिपाठी जी ने उसे कर के दिखाया

2002 में जगद्गुरु श्री कृपालु जी महराज ने जगद्गुरु कृपालु परिषत् की अध्यक्षता अपनी बड़ी सुपुत्री सुश्री डॉ. विशखा त्रिपाठी जी को सौंप दी।
नई दिल्ली [भारत], 29 नवंबर: उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ ज़िले में कुंडा नाम का एक कस्बा है। कुछ दशकों पहले तक यहाँ के आस–पास के गाँवों में साक्षरता का स्तर बहुत ही निम्न था। पूरा इलाका भयंकर गरीबी की चपेट में था। महिलाओं की स्थिति तो और भी दयनीय थी। ऐसे में विश्व के पाँचवें मूल जगद्गुरु, श्री कृपालु जी महाराज द्वारा स्थापित जगद्गुरु कृपालु परिषत् द्वारा कुंडा में शुरू किया गया कन्याओं के लिए निःशुल्क विद्यालय आशा की एक किरण लेकर आया। कुछ ही समय में सैकड़ों कन्याओं ने स्कूल में अपना नाम लिखवाया एवं मुफ्त, उच्च गुणवत्ता की शिक्षा का लाभ लेने लगीं। देखते ही देखते समाज की स्थिति परिवर्तित होने लगी। लड़कियाँ पढ़–लिख कर स्वावलम्बी बनने लगीं एवं डॉक्टर से लेकर पुलिस तक हर प्रकार के प्रोफेशन में अपना परचम लहराने लगीं।
बड़ी दीदी का नेतृत्व: नारी शक्ति को मिली नई दिशा
2002 में जगद्गुरु श्री कृपालु जी महराज ने परिषत् की अध्यक्षता अपनी बड़ी सुपुत्री सुश्री डॉ. विशखा त्रिपाठी जी को सौंप दी। बड़ी दीदी के निर्देशन में, संस्था के जन–कल्याण के कार्यों में बढ़ोत्तरी ही होती चली गयी।
https://www.youtube.com/watch?v=C3NUgArkTjE
कहते हैं कि जब आप एक लड़के को शिक्षित करते हैं, तो आप एक व्यक्ति को शिक्षित करते हैं। लेकिन जब आप एक लड़की को शिक्षित करते हैं, तो आप दो परिवारों को शिक्षित करते हैं – लड़की का पैतृक परिवार और वह परिवार जिसमें उसकी शादी होती है। एक शिक्षित महिला यह सुनिश्चित करती है कि उसके बच्चे भी शिक्षित हों। एक शिक्षित बच्चा न केवल खुद के लिए और अपने परिवार के लिए एक अच्छी जीविका चलाने के काबिल बनता है, बल्कि सामाजिक, नैतिक और आध्यात्मिक निर्णय लेने में भी सक्षम हो जाता है। इसलिए, एक बेटी को शिक्षित करना समाज के सम्पूर्ण स्तर को एक या दो पीढ़ियों के भीतर ऊपर उठाने का माध्यम बन जाता है।
किसी भी समाज की स्थिति जाननी हो तो उसकी महिलाओं की स्थिति देखनी चाहिए। जब कुंडा एवं आस–पास के क्षेत्रों में महिलाएँ सशक्त बनने लगीं, तब समाज का विकास स्वतः ही होने लगा।
शिक्षा के माध्यम से समाज का समग्र विकास
कृपालु बालिका प्राथमिक विद्यालय के बाद, कन्याओं की आगे की शिक्षा के लिए कृपालु बालिका इंटरमीडिएट कॉलेज और कृपालु महिला महाविद्यालय भी स्थापित किये गए जहाँ के. जी. से लेकर स्नातकोत्तर एवं बी. एड. तक की शिक्षा पूर्णतः निःशुल्क रूप से उपलब्ध कराई जा रही है। इससे न केवल लड़कियाँ पढ़–लिख कर अपने पैरों पर खड़ी हो रही हैं बल्कि उनके परिवार एवं पूरे समाज का एक साथ उत्थान हो रहा है।
यह गर्व का विषय था जब डॉ. विशाखा त्रिपाठी जी की अध्यक्षता में धर्मार्थ शैक्षणिक संस्थान कृपालु बालिका इंटर कॉलेज की एक छात्रा ने 2023 में उत्तर प्रदेश राज्य बोर्ड परीक्षाओं में पाँचवाँ स्थान हासिल किया। यह इन संस्थानों की अनेक उपलब्धियों का एक उदाहरण मात्र है।
डॉ. विशाखा त्रिपाठी जी: नारी शक्ति की प्रेरणा
जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज की ज्येष्ठा सुपुत्री एवं जगद्गुरु कृपालु परिषत् की अध्यक्षा सुश्री डॉ. विशाखा त्रिपाठी जी नारी सशक्तिकरण पर लम्बे–चौड़े वक्तव्य तो नहीं देती थीं पर उन्होंने वो काम करके दिखाए जिससे उत्तर प्रदेश के कई ज़िलों की दशा एवं दिशा परिवर्तित हो गयी। स्वयं एक नारी होते हुए उन्होनें न केवल इन स्कूल, कॉलेजों का संचालन बड़ी ही कुशलता से किया, बल्कि परिषत् के अन्य कार्यों को भी बखूबी सम्पादित किया।
जगद्गुरु कृपालु परिषत् की अध्यक्षा के रूप में सुश्री डॉ. विशखा त्रिपाठी जी ने प्रेम मंदिर–वृन्दावन, भक्ति मंदिर–श्री कृपालु धाम मनगढ़ और कीर्ति मंदिर–बरसाना के संचालन में भी प्रमुख भूमिका निभाई। इसके अतिरिक्त श्री वृन्दावन, श्री कृपालु धाम मनगढ़ और श्री बरसाना धाम में तीन विश्व–स्तरीय निःशुल्क अस्पतालों का भी दीदी जी ने प्रबंधन किया।
अपने समाज सुधार कार्यों के लिए बड़ी दीदी को अनेक अवार्ड्स से सम्मानित किया गया जिनमें नेल्सन मंडेला शांति पुरस्कार, मदर टेरेसा उत्कृष्टता पुरस्कार, शीर्ष 50 भारतीय आइकन पुरस्कार, राजीव गांधी वैश्विक उत्कृष्टता पुरस्कार आदि शामिल हैं।
महान समाज सुधारक एवं गुरु भक्त
डॉ. विशाखा त्रिपाठी जी ने पूरा जीवन अपने पिता एवं गुरु, जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज के कार्यों को आगे बढ़ाने के लिए समर्पित कर दिया एवं अपनी अंतिम श्वास तक जीवों के आध्यात्मिक एवं भौतिक उत्थान के लिए प्रयत्नशील रहीं।
इन सब कार्यों के द्वारा डॉ. विशाखा त्रिपाठी जी ने गुरु सेवा और ईश्वर प्रेम का सन्देश तो दिया ही, साथ ही साथ नारी शक्ति का भी अनुपम उदाहरण प्रस्तुत किया। ये विश्व सदा उन्हें एक महान समाज सुधारक एवं गुरु भक्त के रूप में याद करेगा।
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शिव मंदिर में मोरारी बापू की पूजा: एक न्यायसंगत दृष्टिकोण

नई दिल्ली : काशी, भारत का आध्यात्मिक केंद्र, जहाँ धर्म, संस्कृति और परंपराओं का सम्मान होता है, वहाँ हाल ही में एक विवाद ने जनमानस में चर्चा जगाई है। प्रख्यात रामचरितमानस के व्याख्याता और आध्यात्मिक गुरु मोरारी बापू, जिनकी पत्नी का कुछ दिन पहले निधन हुआ, उन्होंने काशी के शिव मंदिर में पूजा-अर्चना की और रामकथा गायन किया। इस घटना को लेकर कुछ लोगों ने विरोध व्यक्त किया, उनका कहना है कि सूतक के समय में धार्मिक कार्य नहीं करने चाहिए। परंतु, यह लेख मोरारी बापू के निर्णय का समर्थन करता है और अन्य संतों के उदाहरणों द्वारा उसकी पीछे के आध्यात्मिक तथा मानवीय पहलुओं को प्रस्तुत करता है।
मोरारी बापू एक ऐसे संत हैं, जिन्होंने छह दशकों से भी अधिक समय से रामचरितमानस के माध्यम से सत्य, प्रेम और करुणा का संदेश विश्वभर में फैलाया है। उनकी कथाओं ने लाखों लोगों के जीवन को प्रेरणा दी है। अपनी पत्नी के निधन के बाद भी उन्होंने अपने आध्यात्मिक कर्तव्य को जारी रखने का निर्णय लिया, जो उनकी निष्ठा और धर्म के प्रति प्रतिबद्धता का प्रतीक है। हिंदू धर्म में सूतक की परंपरा अलग-अलग समुदायों में विभिन्न तरीकों से निभाई जाती है, और इसका पालन व्यक्तिगत संदर्भ पर निर्भर करता है। मोरारी बापू ने शिव मंदिर में पूजा करके किसी परंपरा का उल्लंघन नहीं किया है; बल्कि, उन्होंने एक संत के रूप में अपने धर्म का पालन किया, जिसमें भगवान की भक्ति और लोगों के कल्याण का समावेश होता है।
हिंदू धर्म में शिव की पूजा मृत्यु और पुनर्जन्म के चक्र को स्वीकार करने का प्रतीक है। शिव, जिन्हें महादेव के रूप में जाना जाता है, वे जीवन और मृत्यु दोनों के स्वामी हैं। हमें यह समझना चाहिए कि सूतक का समयकाल शोक और चिंतन का समय होता है, परंतु इसका अर्थ यह नहीं है कि व्यक्ति भगवान की भक्ति से वंचित रहे।
ऐसा ही एक उदाहरण गुजरात के महान संत नरसिंह मेहता का है। नरसिंह मेहता ने अपने जीवन में अनेक दुख सहे, जिसमें उनके परिवार के सदस्यों का निधन भी शामिल था। फिर भी, वे भगवान कृष्ण की भक्ति में लीन रहे और अपने भजनों द्वारा लोगों को प्रेरणा दी। उनका प्रसिद्ध भजन “वैष्णव जन तो” आज भी मानवता का संदेश देता है। नरसिंह मेहता ने दुख की घड़ियों में भी भक्ति को नहीं छोड़ा, जो मोरारी बापू के निर्णय के साथ समानता दर्शाता है।
दूसरा उदाहरण संत जलारामबापा का है, जिन्होंने गुजरात के वीरपुर में अन्नदान की परंपरा स्थापित की। जलारामबापा ने अपने जीवन में अनेक चुनौतियों का सामना किया, लेकिन उन्होंने कभी भगवान राम की सेवा और लोगों की मदद करना बंद नहीं किया। एक बार, जब उनके एक करीबी संबंधी का निधन हुआ, तब भी उन्होंने अन्नदान जारी रखा, क्योंकि उनका मानना था कि सेवा भगवान की भक्ति का सर्वोच्च स्वरूप है। मोरारी बापू का रामकथा जारी रखना, ऐसी ही भक्ति और सेवा की भावना दर्शाता है।
मोरारी बापू के विरोध के पीछे का कारण कट्टरपंथ हो सकता है, लेकिन, हमें भूलना नहीं चाहिए कि हिंदू धर्म में लचीलापन और व्यक्तिगत आध्यात्मिकता को स्थान है। उन्होंने 2002 के गुजरात दंगों के दौरान शांति का संदेश दिया, उत्तराखंड के बाढ़ पीड़ितों को राहत पहुंचाई,और युवक युवतियों के विवाह के लिए आर्थिक मदद की। इनकी सनातनके प्रति निष्ठा पर संदेह करना हमारी समझ की सीमा दर्शाता है। मोरारी बापू की कथाएँ केवल धार्मिक विधि नहीं हैं, बल्कि वे लोगों को नैतिक और आध्यात्मिक मार्गदर्शन देती हैं। उनके शोक की घड़ियों में भी कथा जारी रखना यह दर्शाता है कि वे व्यक्तिगत दुख को एक तरफ रखकर समाज के हित के लिए कार्यरत रहे। यह एक सच्चे संत की निशानी है, जो दुख को भक्ति और सेवा में रूपांतरित करते हैं। अंत में, हमें मोरारी बापू के निर्णय को समझना चाहिए और नरसिंह मेहता तथा जलारामबापा जैसे संतों के जीवन से प्रेरणा लेनी चाहिए। विरोध करने के बजाय, उनकी भक्ति और सेवा का सम्मान करें। मोरारी बापू का जीवन एक उदाहरण है कि धर्म केवल नियमों का पालन नहीं है, बल्कि एक भावना है जो मानवता को उन्नत करती है।
अस्वीकरण: उपर्युक्त विचार लेखक के निजी हैं और प्रकाशन की राय को प्रतिबिंबित नहीं करते।
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स्वच्छता, पवित्रता, प्रसन्नता, स्वतंत्रता और असंगता, यही सच्चे साधु के पंचतत्व हैं: मोरारी बापू

अहमदाबाद (गुजरात), जून 16 :लगाजरडा में श्रीमती नर्मदाबा के भंडारे में विमान दुर्घटना के पीड़ितों को श्रद्धांजलि के साथ मोरारी बापू ने संतों–महंतों की उपस्थिति में व्यक्त किए भाव।
दिनांक 13 जून की संध्या को तलगाजरडा में प्रसिद्ध आध्यात्मिक गुरु और राम कथा वाचक मोरारी बापू की धर्मपत्नी श्रीमती नर्मदाबा के भंडारे के अवसर पर, संतों और महंतों की उपस्थिति में बापू ने सभी के प्रति अपनी भावनाएँ प्रकट कीं और कहा कि स्वच्छता, पवित्रता, प्रसन्नता, स्वतंत्रता और असंगता, यही साधु के पंचतत्व हैं।
अहमदाबाद विमान दुर्घटना की पीड़ा और दिवंगत आत्माओं को श्रद्धांजलि देते हुए, पूज्य मोरारी बापू ने एक आदर्श साधु की परिभाषा देते हुए कहा कि ये पंच गुण एक सच्चे साधु की पहचान हैं। उन्होंने प्रत्येक तत्व पर संक्षिप्त रूप से प्रकाश डाला और जोड़ा कि साधु लाभ के लिए नहीं, बल्कि शुभ के लिए कार्य करता है। उन्होंने यह भी कहा कि समाज द्वारा साधु के प्रति श्रद्धा रहती है, परंतु साधु को सहनशील भी होना पड़ता है।
इस भंडारे में श्री सतुआ बाबा, श्री अंशु बापू, श्री दुर्गादास बापू, श्री ललितकिशोर महाराज, श्री जानकीदास बापू, श्री राम बालकदासजी बापू, श्री निर्मला बा, श्री निजानंदजी स्वामी, श्री दलपतराम पधियारजी, श्री दयागीरी बापू, श्री जयदेवदासजी, श्री राजेंद्रप्रसाद शास्त्री, श्री रामेश्वरदासजी हरियाणी, श्री भक्तिराम बापू, श्री घनश्याम बापू आदि अनेक संत, महंत और कथाकार उपस्थित थे।
भंडारे की विधि में मोरारी बापू और चित्रकूटधाम परिवार के समन्वय से सभी ने प्रार्थना और प्रसाद ग्रहण किया। विमान दुर्घटना को ध्यान में रखते हुए संतवाणी के सभी कार्यक्रम स्थगित कर दिए गए हैं। पूज्य मोरारी बापू ने इस कार्यक्रम को विमान दुर्घटना में दिवंगत आत्माओं को समर्पित किया।
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